डॉक्टर कलीम:रिछा कस्बे का एक नौजवान, जिसके पास, तालीम के एतबार से डॉक्टरी की डिग्री थी,और क्लिनिक भी अच्छी-भली चलती थी,लेकिन उसको कस्बे की तमाम समस्याओं और समाजी विकारों को लेकर बेचैनी थी. दिल में उनसे लड़ने-जूझने का जूनून था, और फिर उसने अपने इस मक़सद को पूरा करने के लिए क़लम उठाया. अख़बार के ज़रिए उसने अपने इस मिशन को बहुत खूबसूरती के साथ शुरू किया.
क्लिनिक पर मरीज़ों को देखने के साथ ही डॉक्टर कलीम दैनिक जागरण अख़बार से जुड़ गए. बेहतरीन व्यवहार और मिलनसार प्रवर्ति के चलते वह रिछा के साथ आसपास के इलाके में जल्द ही काफ़ी मशहूर हो गए थे. रिछा की पार्टीबंदी के बीच वह इस तरह से सामंजस्य बनाकर चले, कि कभी उनको मुश्किल नहीं आई. पत्रकार साथियों के सच्चे हमदर्द के तौर पर उन्होंने साथ निभाया. कुछ बरस पहले वह आयुष के ज़रिए सरकारी सेवा में भी जुड़ गए थे.
कोरोना से जंग तो वह जीत गए थे, लेकिन पिछले कुछ समय से वह काफ़ी बीमार हो गए थे, और कल उन्होंने इस दुनिया-ए-फ़ानी को अलविदा कह दिया. शाम को रिछा के कब्रिस्तान में उनको बड़ी तादाद में आए लोगों ने सुपुर्द खाक़ कर दिया. उनका इस तरह जाना यक़ीनन बेहद तकलीफ देय है. दरअसल हम सब ने एक सच्चा हमदर्द और नेक दिल इंसान खो दिया.
नहीं रहे रिछा के पत्रकार डॉक्टर कलीम:एक सच्चा हमदर्द और नेक दिल इंसान चला गया
