विकलांगों के लिए सहायक तकनीक एवं समावेशन : एक समालोचना
संजय सोंधी, उपसचिव, भूमि एवं भवन विभाग दिल्ली सरकार
विकलांगता के सामाजिक सांस्कृतिक मॉडल के आधार पर समाज एवं नीति निर्माता इस कथन पर सहमति जताते हैं कि ‘एक व्यक्ति विकलांग नहीं होता वरन वातावरण में विकलांगता होती हैं, जिसके कारण एक विकलांग व्यक्ति को परिदृश्य से बाहर निकाल दिया जाता हैं l विकलांग व्यक्ति भी समाज व राष्ट्र के विकास में तथा उसे बेहतर बनाने में अपना योगदान देते हैं l उनके योगदान को और अधिक सार्थक और दृश्य बनाने के लिए उन्हें समावेशन से पूर्ण वातावरण उपलब्ध कराया जाना महत्वपूर्ण हैं l इसके लिए सहायक तकनीक (Assistive Technology) का उपयोग अनिवार्य होगा l
शोध अध्ययनों के अनुसार वर्तमान में 2.5 करोड़ लोगों को सहायक तकनीकों की जरूरत हैं तथा 2050 तक 3.5 करोड़ लोगों को सहायक तकनीकों की जरुरत होगी l यहाँ ध्यातव्य हैं कि विकासशील देशों में (जहाँ विकलांग लोगों की संख्या ज्यादा हैं वहाँ सहायक तकनीक सीमित मात्रा में हैं तथा गुणवता की दृष्टि से भी बेहतर नहीं हैं l विकलांग लोगों को बिना किसी भेदभाव के शिक्षा देने का प्रावधान किया गया था l इस उद्देश्य को आज तक भी पूरा नहीं किया जा सका हैं l इसका सबसे बड़ा कारण हैं समाज में समावेशन पूर्ण वातावरण का न होना तथा सहायक तकनीकों का उचित और पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध न होना l
समाज में समावेशन लाने के लिए यह सुनिश्चित हो कि :
सहायक यंत्रों की गुणवत्तापूर्ण उपलब्धता हो
कम कीमत में सहायक यंत्र उपलब्ध हो
सहायक यंत्रों के कुशलतापूर्ण उपयोग के लिए प्रशिक्षण हो कार्यशालाओं की उपलब्धता
सहायक यंत्रों को और भी अधिक सुविधाजनक बनाए जाने के लिए निरंतर शोध कार्यों का होना सुनिश्चित हो l
सहायक यंत्रों के उपयोग में होने वाले जोखिमों को कम करने संबंधी निरंतर प्रयास होना सुनिश्चित हो आदि ।
शोध अध्ययनों के अनुसार, विकलांगों की शैक्षिक स्थिति भी बहुत सकारात्मक नहीं हैं। विद्यालय में नामांकन कराने वाले विकलांग बालकों में 47% प्राथमिक शिक्षा को पूर्ण कर पाते हैं, 33% माध्यमिक शिक्षा पूर्ण कर पाते हैं तथा 27% बालक अपनी उच्चतर माध्यमिक शिक्षा पूर्ण कर पाते हैं l उच्च शिक्षा के क्षेत्र में स्थिति और भी दयनीय हो जाती हैं l
ब्राज़ील के G-20 सम्मलेन में पृथ्वी को एक समावेशित ग्रह बनाने का उद्देश्य रखा गया था l सहायक तकनीक निर्माण एवं वितरण का कार्यक्रम का उद्देश्य हैं कि ‘सभी जन (सामान्य और विकलांग) के लिए समावेशित विश्व का निर्माण करना l G-20 और इस कार्यक्रम के उद्देश्य एक दूसरे से समानता रखते हैं l शैक्षिक संस्थानों में सहायक तकनीक की उपलब्धता और विकास को समझने के लिए यहाँ विश्व स्वाश्थ्य संगठन का 5 P मॉडल को देखना कारगर रहेगा l
WHO का 5 P मॉडल देखिए: (1) पीपल (2) प्रोडक्ट (3) पालिसी (4) प्रोविजन (5) पर्सोनल
सहायक तकनीक के विषयार्थ निम्नलिखित चुनौतियाँ दिखाई देती हैं :
इस क्षेत्र में एक बड़े निवेश की जरूरत होगी l
इस क्षेत्र में सामान्यत: तकनीकी विशेषज्ञों व कुशलताओं का अभाव हैं l उपयुक्त उत्पादन और प्रावधानों के मध्य अंतराल रहता हैं l
इस क्षेत्र के विषय में लोगों में जागरूकता का अभाव दिखाई देता हैं l
नीतियों के कारण भेदभाव की स्थिति का उत्पन होना
सहायक तकनीक के जो उत्पाद उलब्ध भी हैं उनकी मांग और पूर्ति के मध्य गंभीर अंतराल व्याप्त हैं l
वित्तीय संसाधनों का भी गंभीर अभाव हैं l
जिन उत्पादों की पूर्ति हो रही हैं वह भी गुणवत्ता के स्तर पर न्यून है l
सहायक तकनीक का बाज़ार बहुत विखंडित अवस्था में हैं l
नीतियाँ बनाने व उन्हें लागू करने वाली सरकार के प्रतिनिधियों की संकल्प शक्ति में कमी हैं l
समस्त दुनिया के विकलांग लोगों के हितार्थ सहायक तकनीक का गुणवत्तापूर्ण विकास होना अनिवार्य हैं l इसकी शुरुआत शैक्षिक संस्थानों से हो सबसे बेहतर हैं l शोध अध्ययनों में यह पाया गया कि शैक्षिक संस्थानों में सहायक तकनीकों का कुशलतापूर्ण उपयोग भविष्य में इनकी कुशलताओं और कार्यशालाओं पर होने वाले व्यय को कम करने के लिए महत्वपूर्ण निवेश होगा l शैक्षिक संस्थानों में एक साथ विकलांग विद्यार्थी, अभिभावक, अध्यापक, जनप्रतिनिधि, नीति निर्माण करने वाले वर्ग के रूप में हम समाज के एक बड़े समुदाय को एक साथ सम्पर्क में ले आते हैं l स्पष्ट हैं कि सहायक तकनीक क्या हैं, कैसी हो, उसका प्रभावी निर्माण व उपयोग कैसे हो आदि के विषय में जानकारियों का एक साथ प्रचार प्रसार हो सकता हैं l इसके साथ ही अध्यापकों के साथ अभिभावकों के प्रशिक्षण की व्यवस्था भी संभव हैं l जिससे विकलांगता का समाज में वृहद् समावेशन संभव हो सकेगा, सहायक तकनीक इसका आधार बनेगी l