सियासी विरासत बेटी को सौंपने के लिएफिक्रमंद संतोष गंगवार,तैयार कर रहे ‘ज़मीन’

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संवाददाता
बरेली।बरेली के दिग्गज नेता और 8 बार लोकसभा में बरेली का प्रतिनिधित्व करने वाले संतोष गंगवार अब एक बार फिर सक्रिय हुए हैं.इस बार उनका सक्रिय होना सीधे किसी चुनावी मुहिम की वजह नहीं,बल्कि अपनी सियासी विरासत को बरक़रार रखने के लिए है.वह अब अपनी बेटी को सियासत में अपने सियासी वारिस के तौर पर उतारने के लिए ज़मीन तैयार कर रहे हैं.प्रधानमंत्री और यूपी के मुख्यमंत्री से उनकी मुलाक़ात को यूं तो शिष्टाचार भेंट का नाम दिया जा रहा है,लेकिन सियासी गलियारों में इन मुलाक़तों के पीछे बेटी के लिए माहौल बनाना कहा जा रहा है.
केंद्र सरकार में मंत्री रहे संतोष गंगवार की गिनती बीजेपी के कद्दावर और वरिष्ठ नेताओं में होती है,और वह 8 बार लोकसभा का चुनाव भी जीते,लेकिन पिछली मोदी सरकार में अचानक उनको मंत्री पद से हटा दिया गया.उनको मंत्री पद से हटाने के पीछे की वजह को राजनीतिक हलकों में थोड़ी-बहुत चर्चाएं चलीं,लेकिन कोई ठोस कारण सामने नहीं आ पाया.गुज़रे लोकसभा चुनाव से पहले उनके टिकट को लेकर चर्चाएं चलने लगीं.उनकी 75 साल पार उम्र को आधार बनाकर टिकट न मिलने की बात चलने लगी,लेकिन टिकट फाइनल होने के आखिरी वक्त तक उनका टिकट नहीं कटने के आसार दिखने लगे,लेकिन उनका टिकट बीजेपी हाईकमान ने काट दिया,और उनकी जगह छत्रपाल सिंह को बरेली से अपना प्रत्याशी बना दिया.

चुनाव के दौरान संतोष गंगवार को
लेकर रहीं थीं तमाम चर्चाएं

लोकसभा चुनाव के दौरान संतोष गंगवार के समर्थकों की भूमिका को लेकर तमाम चर्चाएं रही थीं.इस स्थिति से घबराए बीजेपी संगठन ने बरेली में प्रचार के लिए गृह मंत्री और प्रधानमंत्री के साथ तमाम केंद्रीय मंत्री और कई प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों तक को यहां प्रचार के लिए भेजा,तब जाकर यह सीट जीती जा सकी.प्रचार के दौरान बीजेपी के बड़े नेताओं ने जनसभाओं में संतोष गंगवार को बड़ी जिम्मेदारी देने की बातें भी कहीं,ताकि उनको लेकर उठे असंतोष को दूर किया जा सके.खैर सीट जीती,और अब संतोष गंगवार को झारखंड का गवर्नर भी बना दिया गया.

गवर्नर तो बन गए,लेकिन फ़िक्र
राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने की

संतोष गंगवार की पहचान एक ज़मीनी नेता के रूप में है.सहज उपलब्धता और मृदुल व्यवहार उनकी खासियत है.लम्बे राजनीतिक कैरियर के चलते उनका रोज़ाना लोगों के बीच रहना उनकी आदत में आ गया है,जबकि राज्यपाल का पद लोगों से घुला-मिला होने वाला नहीं माना जाता.इस पद की अपनी अलग मर्यादा है.संतोष गंगवार पिछले काफी दिनों से अपनी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए सोच रहे हैं,और गाहे-बगाहे चर्चा चलती रहती है,कि वह अपनी बेटी को सियासत में लाने की सोच रहे हैं.विधान सभा चुनाव के वक़्त से यह चर्चाएं चल रही थीं,लेकिन अभी तक उनकी बेटी श्रुति गंगवार का सक्रिय राजनीति में पदार्पण नहीं हुआ.अब संतोष गंगवार के राज्यपाल बनने के बाद यह चर्चा फिर तेज़ हुई है.अर्बन कोऑपरेटिव बैंक का चेयरमैन उनको चुनने के बाद इस चर्चा में दम पड़ा है.पिछले दिनों मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से हुई उनकी मुलाक़ात को भी इसी नज़रिए के तहत माना जा रहा है.ये भी कहा जा रहा है कि संतोष गंगवार अब धीरे-धीरे उनको जनता के बीच ले जाएंगे,और संभव है कि विधानसभा चुनाव में वह बेटी श्रुति को मैदान में उतार दें.कहा जा रहा है कि वह अपनी बेटी के लिए बहेड़ी विधान सभा को चुन सकते हैं,जो फिलहाल बीजेपी के हिसाब से खाली है.वैसे आने वाला वक़्त ही इन सब कयासों की हक़ीक़त को सामने ला पाएगा.

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