इलाहाबाद बैंक, कुतुबखाना (इंडियन बैंक) शाखा की करतूत:-

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इलाहाबाद बैंक, कुतुबखाना (इंडियन बैंक) शाखा की करतूत:-

एफडी की मियाद 8 वर्ष बीते 45 वर्ष, 80 वर्षीय विधवा सिविल जज सीनियर डिवीजन में लड़ रही कानूनी जंग
-सीबीआई लखनऊ तीन कर्मचारियों को दे चुकी है दंड

-3.5. 2013 को परवाना वसूली भी ले चुका है बैंक
-फिर भी विधवा को बैंक नहीं कर रही भुगतान, अब 13 सितंबर 2023 को होगी जंग

बरेली। इलाहाबाद बैंक, कुतुबखाना (इंडियन बैंक) शाखा की करतूत देखिए एफडी की मियाद 8 वर्ष बीते 45 वर्ष फिर भी बैंक नहीं कर रही लगभग चालीस लाख रुपए का भुगतान। फरीदपुर बरेली निवासी 80 वर्षीय विधवा कुसुम लता तोमर सिविल जज सीनियर डिवीजन में कानूनी जंग लड़ते लड़ते 35 वर्ष से अब 80वर्ष की वृद्ध होकर कई बीमारियों की चपेट में आ गई है। इसी मामले में सीबीआई लखनऊ तीन कर्मचारियों को दंड भी दे चुकी है। यही नहीं दिनांक 3.5. 2013 को बैंक तत्कालीन शहर अमीन आबिद अली खान से परवाना वसूली भी ले चुका है। फिर भी विधवा को बैंक कानूनी जंग में उलझाकर टालमटोल कर रही है कहां है भारत सरकार का (प्रधानमंत्री मोदी का) महिला सशक्तिकरण अभियान और कितना सशक्त बने महिला। अब 13 सितंबर 2023 को सिविल जज सीनियर डिवीजन के यहां होनी है सुनवाई। थक-हार कर 4 सितंबर 2023 को जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव माननीय जज से भी मिल चुकी है पीड़िता। पीड़िता 80 वर्षीय विधवा कुसुम लता तोमर ने अपने पति स्वर्गीय जगवीर पाल सिंह तोमर ज्येष्ठ गन्ना विकास निरीक्षक की मृत्यु के बाद 1978 में इलाहाबाद बैंक कुतुबखाना शाखा (वर्तमान इंडियन बैंक निकट पुराना रोडवेज बरेली) में ₹ पच्चीस हजार की एफडी बनवाई थी। पीड़िता 1986 में एफडी की मियाद पूरी होने पर भुगतान लेने बैंक पहुंची बैंक में भुगतान नहीं हुआ। मैनेजर द्वारा एफडी ले ली गई और बहुत कहासुनी के बाद एक रसीद बैंक ने दे दी। फिर बैंक द्वारा पीड़िता को टहलाया गया भुगतान नहीं दिया गया। इसी बीच बैंक ने सीबीआई लखनऊ में दिनांक 30.9.1986 को मुकदमा नं आर.सी.51/86 दायर किया। जिसमें पीड़िता को गवाही के लिए भी सीबीआई लखनऊ बुलाया गया पीड़िता ने गवाही दी। उक्त मामले में सीबीआई ने बैंक के कर्मचारी वीरेंद्र नाथ मेहरोत्रा, कृष्ण नाथ टंडन और कालीचरन को उक्त प्रकरण में दोषी मानते हुए उक्त कर्मचारियों के विरुद्ध आरोप पत्र प्रेषित किया तथा विशेष न्यायालय सीबीआई द्वारा उक्त लोगों को दोषी मानते हुए दंडित भी किया जा चुका है। पीड़िता ने बैंक के चक्कर काटकर थक हारकर 1989 में सिविल जज सीनियर डिवीजन बरेली में वाद सं 132 /1989 दर्ज किया। तीन साल की कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद वादिनी के पक्ष में माननीय न्यायालय सिविल जज सीनियर डिवीजन एस सी मंगला ने 11 मई 1992 को एक पक्षीय आदेश पारित करते हुए सव्यय एफडी की धनराशि 51750 रुपए 10% वार्षिक चक्रवर्ती ब्याज सहित भुगतान की तिथि तक बैंक से पाने के आदेश जारी किए। निष्पादन सं. 08/ 09 में तत्कालीन सिविल जज सीनियर डिवीजन के आदेश पर वसूली परवाना 3 मई 2013 को तत्कालीन शहर अमीन आबिद अली खान द्वारा शाखा प्रबंधक को प्राप्त करा दिया गया इसमें शाखा प्रबंधक ने अपने हस्ताक्षर और मोहर दी। बैंक फिर भी विधवा को कानूनी दांव पेंच लगाकर टालमटोल करती रही। जब बैंक वालों को होश आया फिर 13 जुलाई 1992 को जिला जज की अदालत में अपील दायर कर दी। अपील खारिज हो गई। बैंक ने एक पक्षी आदेश के विरुद्ध 23 जुलाई 1992 को रेस्टोरेशन का वाद दायर किया जो 28 जुलाई 1997 को खारिज हो गया तब से बैंक ने कई रेस्टोरेशन दायर किए जो की खारिज होते गए। अब देखना यह है कि अस्सी वर्षीय वृद्ध विधवा महिला को एफडी के भुगतान के लिए बैंक से कितनी लड़ाई और लड़नी होगी यह बुधवार 13 सितंबर 2023 को सिविल जज सीनियर डिवीजन बरेली में तय होगा। इसी बीच 4 सितंबर 2023 को पीड़िता ने जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के माननीय सचिव सीनियर जज को प्रार्थना पत्र देकर बैंक से माननीय न्यायालय के आदेशानुसार भुगतान दिलाने का आग्रह किया। पीड़िता 80 वर्षीय वृद्ध विधवा महिला कुसुम लता तोमर ने कहा कि मैं मुकदमा लड़ते-लड़ते थक हार चुकी हूं जिससे मुझे कई बीमारियों ने चपेट में ले लिया है। आम जनता का विश्वास बैंक पर कैसे बनेगा जब एफडी के भुगतान के लिए 8 वर्ष के स्थान पर 45 वर्ष लगेंगे। पीड़िता बोली कि यह बैंक कर्मचारियों का घोटाला है बैंक कर्मचारियों को सीबीआई ने सजा दी बैंक अब मुझे सिविल जज सीनियर डिवीजन के दिनांक 11.5.1992 के आदेश के क्रम में शीध्र भुगतान मेरे खाता में दे।

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