मैं संसद से बोल रहा हूं
काला चिट्ठा खोल रहा हूं
किसमें भरा है कितना पानी
एक एक को तोल रहा हूं।।
भैया दादा कहते कहते
मैं भी दादा आज बना हूं
पीछे पीछे चलते चलते
बुड्ढा होकर आज तना हूं
नेताओं की दूम हिलाते
बोल वचन अनमोल रहा हूं।।
खाते के अन्दर खरबों हैं
मगर भिखारी से अरबों हैं
पान दूसरों का खाता हूं
फ़िर कुर्ते को खनकाता हूं
उनके पीछे मैं भी चल चलकर
राज़ अनेकों जान गया हूं
समझ मुझे लेकिन अब आया
जब खाली जेब टटोल रहा हूं।।
अन्दर से मिट्ठी मिट्ठी है
बाहर से चिट्ठी गुट्टी है
अन्दर से लैला मजनू हूं
बाहर से दूजे सजनूं हूं
बात समझ सब कुछ मैं जाना
तब समाज में ढोल रहा हूं।।
घर की बीबी को पैसा न
बाहर बिकता जिस्म खरीदूं
एक बार के लाखों देकर
कच्ची कलियों का रंग नोचूं
कमरे के अन्दर की सारी
आज़ आवाज़ खखोल रहा हूं।।
ढली जवानी है मेरी पर
भरी जवानी लूट रहा हूं
दम अपने तन का दिखलाकर
फ़ूल हुश्न पर टूट रहा हूं
दही बनाया अब तक जो मैं
उसका मट्ठा मार रहा हूं
नयी बात यह नहीं मेरी है
पीछे का मैं खगोल रहा हूं।।
मतवाला मैं भी हाथी हूं
अपने बाप का न साथी हूं
जहां सजा हो दूल्हा प्यारा
बना बराती मैं बैठा हूं
जिसमें भोजन अच्छा देखा
वहीं संग मनढोल रहा हूं।।
मैं संसद बोल रहा हूं।।
आशीष पाण्डेय
पता सुल्तानपुर उत्तर प्रदेश