लखनऊ शहर में मानवता का पर्याय बन चुके भारत साइकिल यात्री रामानंद सैनी

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संवाददाता राजेश कुमार बी ए न्यूज़ लखनऊ

राजधानी लखनऊ के रामा नन्द सैनी
ने पिछले 10 वर्षों से समाज सेवा के क्षेत्र में अनेक कार्य किए हैं। प्रस्तुत है उनसे की गई बातचीत के प्रमुख अंश,
सैनी जी आप अपना संक्षिप्त परिचय देते हुए अपने बारे में बताइए।
मेरा नाम रामानंद सैनी है। मैं पेशे से शिक्षक हूं और अपने शिक्षण कार्य से जब मुझे फुर्सत मिलती है तब मैं समाज सेवा को अपना कर्तव्य मानते हुए पूरा समय गरीबों की सेवा में अर्पित करता हूं।
आप सन 2000 तक पत्रकारिता कर रहे थे लेकिन उसके बाद अचानक शिक्षण कार्य में कैसे आ गए ?
जी, मैं पत्रकारिता के क्षेत्र में ही था लेकिन मुझे समाज सेवा के लिए पूरा समय नहीं मिल पा रहा था। इसलिए मैंने वर्ष 2001 में अपनी माता जी के नाम से एसएसडी पब्लिक स्कूल की स्थापना लखनऊ के अलीनगर सुनहरा कृष्ण नगर में की। यहीं से अध्यापन कार्य के साथ-साथ समाज सेवा का सफर शुरू हुआ।
मैंने सुना है आप ने भारत भ्रमण किया यह कब और क्यों किया?
हां, मैंने 1 मई 1994 को उत्तर प्रदेश के राज भवन लखनऊ से तत्कालीन गवर्नर मा मोतीलाल बोरा के आशीर्वाद से भारत साइकिल यात्रा शुरू की थी।इस दौरान लगभग पूरे देश का भ्रमण किया और इसका एक ही उद्देश्य था भारतीय एकता एवं मानवता के संदेश को फैलाना।
आप समाज सेवा के क्षेत्र में क्या क्या कार्य करते हैं?
मैं समाज सेवा के क्षेत्र में गरीब बच्चों को निशुल्क पढ़ाता हूं, गरीब लोगों के लिए नए पुराने वस्त्र दान करता हूं और भूखे लोगों को भोजन प्रदान करने का काम करता हूं। यह सब कार्य मेरी संस्था मानव धर्म मन्दिर की ओर से किया जाता है।इसके अलावा मैंने वस्त्र वितरण के लिए एक वस्त्र बैंक का निर्माण किया है। जहां से प्रतिदिन लखनऊ में घूम घूम कर वस्त्र वितरित किए जाते हैं। आपने कई देशों की यात्रा की है जरा बताइए कहां-कहां गए और क्यों गए?
हां, मैंने अब तक 4 देशों की यात्रा की है यह चारों देश नेपाल ,भूटान ,थाईलैंड और श्रीलंका बौद्ध धर्म के अनुयायी है। चूंकि मैं बौद्ध संस्कृति से प्रभावित हूं, इसलिए इन देशों में जा कर के मैंने मानवता का प्रचार प्रसार किया। साथ ही बौद्ध धर्म को समझने का भी प्रयास किया।
इसके अलावा आप के भ्रमण करने का क्या उद्देश रहता है?
मेरे भ्रमण करने का उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ मानवता का प्रचार प्रसार करना, माता पिता गुरु को भगवान के समान बताना , लोगों को यह बताना कि आपको किसी तीर्थ यात्रा पर जाने की कोई आवश्यकता नहीं । अगर आप अपने घर में माता ,पिता ,गुरु और बड़े बुजुर्गों का सम्मान करते हैं, उनकी सेवा करते हैं।तो सारे सुख आपको घर पर ही प्राप्त हो जाएंगे ।इसी उद्देश्य को लेकर के मैंने मानव धर्म मंदिर की स्थापना की है। जहां पर सैकड़ों लोग आते हैं। स्कूलों व गली कूचे में जा कर के भी मैं अपनी बात बताने का प्रयास करता हूं।
समाज और युवा पीढ़ी के लिए कोई संदेश ।
समाज के सभी वर्गों खासकर युवा पीढ़ी के लिए एक ही संदेश देना चाहता हूं कि आपके पास चाहे जितना पैसा हो, आप चाहे जितने बड़े आदमी हो, लेकिन अपने माता-पिता के एहसान को कभी मत भूलना। उनका सम्मान करना , उनकी सेवा करना आपके सभी कर्तव्य में से प्रथम कर्तव्य होना चाहिए।

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