बदायूँ । वर्तमान समय में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने है, हर पार्टी प्रदेश में अच्छा प्रदर्शन करने के लिए एड़ी से चोटी तक का जोर लगा रही हैं, इसमें राष्ट्रीय पार्टियां भी शामिल है और क्षेत्रीय पार्टियां भी । सभी पार्टियां मीडिया से भरपूर सहयोग भी चाहती हैं , और अपेक्षित सहयोग न मिलने पर गोदी मीडिया या बिकाऊ मीडिया का आरोप लगाने में जरा भी समय बर्बाद नहीं करती । किंतु इस बार भी किसी भी पार्टी के द्वारा अपने घोषणापत्र में पत्रकारों का कोई जिक्र नहीं है । सरकारी स्तर पर यदि कोई घोषणा पत्रकारों के लिए भी की जाती है तो उसका लाभ केवल शासन द्वारा मान्यता प्राप्त पत्रकारों को ही मिल पाता है जो कि बहुत ही कम होते हैं । ऐसे में गैर मान्यता प्राप्त पत्रकारों के लिए कोई भी सुविधा ना होना हमेशा पत्रकारों के लिए निराशाजनक ही रहता है ।
पत्रकारों की संस्था आईरा (रजि.) के बिसौली तहसील उपाध्यक्ष मोहम्मद नसरुद्दीन सैफ़ी ने कहा कि मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना गया है , सरकार और जनता के बीच की मजबूत कड़ी होता है पत्रकार । ऐसे में लगातार पत्रकारों की मांगों को नजरअंदाज करना उचित नहीं है । सरकार को मान्यता प्राप्त पत्रकारों के अलावा श्रमजीवी पत्रकारों ग्रामीण क्षेत्रों से जुड़े पत्रकारों व डिजिटल मीडिया से जुड़े पत्रकारों को भी ध्यान में रखकर योजनाओं को लाना चाहिए । इसके लिए आवश्यक है पहले सरकार यह जानकारी जुटाएं कि वर्तमान समय में कितने लोग पत्रकारिता क्षेत्र से जुड़े हुए हैं । पत्रकार सुरक्षा कानून बनाए जाने की मांग पत्रकारों के संगठन बहुत समय से कर रहे हैं लेकिन कोई भी राजनीतिक पार्टी से लाने की पहल नहीं करती है क्यों? पत्रकारों के स्वास्थ्य के लिए आयुष्मान भारत योजना से गैर मान्यता प्राप्त पत्रकारों को जोड़ने की भी मांग की जा रही है लेकिन इस पर भी सरकार की ओर से कोई पहल नहीं की गई। वर्तमान समय में कोरोना महामारी के विकराल रूप धारण करना फिर शुरू कर दिया है पत्रकार अपनी जान को दांव पर लगाकर अपने काम को अंजाम देते हैं और इन्हीं को लगातार नजरअंदाज किया जाना न्यायोचित नहीं है।