देखिए अल्पसंख्यक समाज के भारतीय गौ रक्षा वाहिनी के उत्तराखंड उत्तर प्रदेश प्रभारी शादाब अली की गायों के प्रति दर्द भरी कहानी क्या लेती है कोई सरकारे अब ठोस कदम
शादाब अली की कलम से
गाय की राजनीति में वापसी, ‘चुनावी लाभ’ के लिए इस्तेमाल
गौमाता राजनीति की जोर-शोर से वापसी हुई है। पिछले सप्ताह मथुरा में राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा,‘कुछ लोगों के कानों में जब गाय और ओम शब्द पड़ते हैं तो उनके कान खड़े हो जाते हैं। वे सोचते हैं कि देश 16वीं और 17वीं शताब्दी में वापस चला गया है। ये ऐसे लोग हैं जिन्होंने देश को बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।’’ प्रधानमंत्री के इस बयान के बाद विपक्षी दल इसके राजनीतिक परिणामों का लाभ उठाने का प्रयास करने लगे और उन्होंने प्रधानमंत्री पर आरोप लगाया कि वह उन लोगों की ओर से आंख मूंद रहे हैं जिनकी गौहत्या के नाम पर हत्या हो रही है।
कुल मिलाकर पवित्र गाय पुन: राजनीति का विषय बन गई है। निश्चित रूप से यह बयान हिन्दुत्व ब्रिगेड के लिए कर्णप्रिय था जो नमो को अपनी सोच के अनुसार मानते हैं और इसे अल्पसंख्यक साम्प्रदायिक तत्वों को हिन्दुओं से खतरे के प्रतीक के रूप में प्रयोग करते हैं। वह चाहते हैं कि गौ संरक्षण और गौ अधिकार कानून बनाया जाए, साथ ही गौहत्या और बलि तथा गौमांस खाने पर प्रतिबंध लगाया जाए क्योंकि गौमाता उनकी संस्कृति और धार्मिक एजैंडे का अभिन्न अंग है। किन्तु लगता है गौमाता के बारे में मोदी के विचार पवित्र गाय की दशा के बारे में नहीं हैं क्योंकि आज प्रतिस्पर्धी राजनीति चल रही है। गाय को पुन: वोट खींचने वाले ब्रांड के रूप में ढूंढ लिया गया है।
सबसे बड़ी बात यह है कि एक अल्पसंख्यक समुदाय से जहां गौ हत्या का आरोप लगता हो वही एक अल्पसंख्यक समुदाय के भारतीय गौ रक्षा वाहिनी के उत्तराखंड उत्तर प्रदेश प्रभारी के पद पर रहते हुए उत्तराखंड में हमेशा गायों की बेदर्दी पर आंसू बहाने वाले शादाब अली ने वह काम कर डाले हैं उत्तराखंड से उत्तर प्रदेश तक जो की शायद ही कुछ लोग गाय माता के दर्द को समझ कर अपना दर्द बांट सके और इसका हिस्सा बन सके शादाब अली की दासता पर नजर डाली जाए तो जो काम खुद के कई संगठन नहीं कर सके वह शादाब अली ने भारतीय गौ रक्षा वाहिनी में एक वाकई बेजुबान जानवर के मसीहा बनकर अपनी भागीदारी निभाई है मर जाने के बाद नालियों से उठाकर उनको स्थानीय जगह पर भिजवा कर उनका संस्कार करवाया वही बेजुबान जानवर जब कभी जख्मी यार रोड पर चल कर किसी गाड़ियों का शिकार हुए तब तक वह अपने निजी मनी पॉकेट से खर्चे के जरिए उसको तत्काल जो भी नजदीकी गौशाला होती थी वहां पर भेजने का काम करते आ रहे हैं और जब 2017 में त्रिवेंद्र जी की सरकार आई उन्होंने गाय माता को राष्ट्र पशु घोषित करने की आवाज उठाई और उन्होंने नगर निगम मेयर पद पर रहते हुए विनोद चमोली देहरादून व देहरादून के डीएम को लिखित में एक स्थानीय गौशाला देने की बात कही लेकिन उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने आदेश तो अपने पद पर रहते हुए भले ही कर डाले हो लेकिन आज तक कोई भी कानूनी प्रक्रिया नहीं हुई जहां आज भी गौ सेवा आयोग में कुछ उसी तरह के लोग नियुक्त है जो खाली गौ सेवा के नाम पर सिर्फ और सिर्फ जेब भर रहे हैं लेकिन शादाब अली ने एक समाजसेवी के रूप में अपना एक ऐसा काम रहे है गाय के प्रति जो उत्तराखंड का शासन प्रशासन बड़े अच्छे और बखूबी जानता है उत्तराखंड के एडीजी पद पर रहते हुए आज डीजीपी पद पर अशोक कुमार ने से जब शादाब अली ने एक निवेदन किया था कि सभी थाने व चौकियों को मेरा नंबर उपलब्ध कराया जाए कहीं पर भी कोई गोवंश आवारा पड़ी दिखाई दे या कोई इनको ले जाकर कटान कराना चाहता हो तो तत्काल इस पर कानूनी प्रक्रिया की जाए जिस पर मुझे मेरा उत्तराखंड के पुलिस द्वारा और आज डीजीपी अशोक कुमार द्वारा तत्काल सभी थानों से लेकर मेरे नम्बर को उपलब्ध कराने का काम किया गया था जहां उत्तराखंड की पुलिस भी कई बार जब कहीं पर कोई विवाद होने की समस्या होती थी तब तब मुझे मेरे उत्तराखंड की पुलिस ने महापौर साथ रहकर गायों को उठाने का काम किया है जिसको लेकर मैंने हमेशा उत्तराखंड की पुलिस का धन्यवाद अदा किया वहीं उत्तर प्रदेश की बात की जाए तो जब महक मुख्यमंत्री के ओएसडी से बात करने के बाद अपॉइंटमेंट देने के बाद भी ना मिलना गवारा हो तब तब शादाब अली ने मुख्यमंत्री को भी मैंने ईमेल के के जरिए अपनी बात को फंसाने का काम किया है लेकिन हद तो तब हो गई जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को व विधायक को लिखित रूप में शिकायती पत्र दिए व शासन प्रशासन तक को डीएम तक लेकिन वहां हमारे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी सुबह उठकर जिसको अपने हाथों से खूब प्यार करते हो और पूजा कर कर अच्छी शुरुआत करते हो लेकिन उन्नाव जिले में वह पूरे उत्तर प्रदेश में बैठे उनके सरकार के भ्रष्ट अधिकारी आज तक शिकायती पत्र लेकर रद्दी की टोकरी ओं में जलाकर खाक कर डाले हो इसीलिए वहां भी हर एक गौशाला के नाम पर लाखों रुपए देने वाली सरकार सिर्फ और सिर्फ तहसीलों से लेकर जिले तक बैठे अधिकारी खूब माल ही माल कमा रहे हैं कुछ संगठन ठेकेदार बन कर अपना जुबानी डोरा पीटकर पीटकर अपना पेट भर रहे हैं जिसको शासन और प्रशासन भी खूब प्रशंसा करता नजर आता है लेकिन जमीनी हकीकत पर तलाशी जाए तो वाकई एक नहीं बड़े-बड़े कई नेशनल अखबारों से लेकर चैनलों तक शादाब अली की सुर्खियों को खूब दिखाया है कि वाकई उन्होंने मरते हुए जानवर को किस तरह से अपने हाथों से उठाकर उनको संस्कार करने का काम एक अल्पसंख्यक समाज में होते हुए किया है इससे अच्छी और क्या मिसाल हो सकती है लेकिन आज तक शादाब अली को किसी भी समाज की तरफ से कोई सम्मानित नहीं किया गया जहां पर मेरे खुद के भारतीय गौ रक्षा वाहिनी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राकेश सिंह परिहार व राष्ट्रीय महामंत्री जीशान चौहान जी द्वारा मुझे सम्मानित करने का काम किया गया।
विकास के एजैंडे से जोड़ा
भाजपा ने बड़ी चालाकी से गौमाता को अपने विकास के एजैंडे में जोड़ दिया है, जिसके दम पर वह केन्द्र और 19 राज्यों में सत्ता में आई है। गाय भाजपा की दीर्घकालीन रणनीति का हिस्सा है और इसे विभिन्न राज्यों के चुनाव घोषणा पत्र में भी शामिल किया गया है और इसको संरक्षण देने वाले भगवाधारी मंत्री, नेता और स्वामी हैं, जिन्होंने अपनी और पार्टी की महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए इसे एक मुद्दा बनाया है, जिसके माध्यम से वह बहुसंख्यक वोट बैंक को एकजुट करेंगे और महाराष्ट्र, हरियाणा तथा झारखंड में आगामी विधानसभा चुनाव में सत्ता में आने के लिए इसका उपयोग करेंगे।
गौ संरक्षण से लेकर राष्ट्रीय कामधेनु आयोग, जिसके अंतर्गत गौवंश का आनुवांशिक उन्नयन, संरक्षण और विकास, गौ पर्यटन सॢकट का निर्माण आदि शामिल हैं। साथ ही एक गौ संरक्षण मंत्रालय भी बनाया गया है। प्रत्येक पंचायत में गौशालाओं का निर्माण और शराब पर 20 प्रतिशत गौ उपकर लगाया गया है। गाय पर सबसे अधिक बल दिया गया है तथा राजनीति, समाज, नैतिकता, विज्ञान, अर्थशास्त्र आदि को पवित्र गाय के आसपास ले आए हैं। उदाहरण के लिए भाजपा शासित उत्तर प्रदेश में पशु संरक्षण और कल्याण तथा गौशालाओं के लिए 600 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है और गायों के लिए एम्बुलैंस सेवा तथा 750 करोड़ रुपए बजट का राष्ट्रीय गोकुल मिशन शुरू किया गया है। उत्तराखंड विधि आयोग ने सिफारिश की है कि राज्य के गौवंश संरक्षण अधिनियम 2007 में संशोधन कर गाय को राष्ट्रमाता घोषित किया जाए और आवारा पशुओं के उपचार के लिए पशु चिकित्सा केन्द्र खोले जाएं। हरियाणा में यदि कोई अपने पशुओं को छोड़ देगा तो उस पर भारी जुर्माना लगाया जाएगा और महाराष्ट्र में गौवंश के संरक्षण के लिए गौ सेवा आयोग की स्थापना की गई है।
कांग्रेस भी मुकाबले में आई
इस मुद्दे पर कांग्रेस भी सामने आई है और वह भावी चुनावी मुकाबलों के लिए भाजपा के हिन्दुत्व गौ मुद्दे का मुकाबला करने का प्रयास कर रही है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा है कि वह गौमाता को गलियों में घूमते नहीं देख सकते हैं और इसलिए एक हजार गौशालाएं खोली जाएंगी तो राजस्थान के मुख्यमंत्री गहलोत ने अवैध रूप से गायों को ले जा रहे वाहनों को जब्त करने और उन गायों को पालने वालों का सम्मान करने की योजना बनाई है। वस्तुत: विपक्ष शासित अन्य राज्य भी गौ संरक्षण में रुचि दिखाने लग गए हैं और अब वे गौहत्या प्रतिबंध अधिनियम को सांडों और बैलों पर भी लागू करने जा रहे हैं, हालांकि इसकी आलोचना हो रही है। कुछ राज्यों ने गौमांस पर प्रतिबंध लगा दिया है।
दिल्ली में ‘आप’ सरकार आधुनिक गौशालाओं का निर्माण कर रही है। दूसरी ओर गौ रक्षकों ने मोदी के बयान से प्रेरणा ली है और वे गौ संरक्षण की आड़ में अल्पसंख्यकों को निशाना बना रहे हैं तथा उन्हें गाय के संरक्षण के नाम पर कोई भी कार्य उचित लगता है चाहे इसके लिए कानून हाथ में लेना क्यों न पड़े। पिछले कुछ वर्ष इसके गवाह हैं जब उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर और दादरी, हरियाणा के वल्लभगढ़ और गुजरात के उना राज्य में गौ संरक्षण के नाम पर लोगों की हत्या की गई।
इस हिंसा का एक कारण संरक्षण और विचारधारा है तथा दूसरी ओर गौरक्षक हत्या कर भी साफ बच निकल जाते हैं क्योंकि नेता उनके कारनामों की ओर आंखें मूंद लेते हैं और गौरक्षा के नाम पर किसी भी तरह के काम को उचित ठहराते हैं। इससे कभी-कभी साम्प्रदायिक उन्माद भी फैलता है किन्तु यह स्थिति दोनों के लिए लाभ की है। देश में गौ संरक्षण लम्बे समय से जीवंत मुद्दा बना हुआ है। हमारे संविधान निर्माताओं ने भी इस मुद्दे पर विस्तार से चर्चा की और अनुच्छेद 48 में प्रावधान है कि राज्य कृषि और पशुपालन को आधुनिक तथा वैज्ञानिक रूप से विकसित करने का प्रयास करेंगे और विशेष रूप से गाय-बछड़ों व अन्य दुधारू पशुओं तथा भारवाही पशुओं की नस्लों के संरक्षण और सुधार के लिए कदम उठाएंगे व उनकी हत्या पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास करेंगे।
कट्टरवादियों की चिरलम्बित मांग
गौरक्षा को राज्य के नीति निर्देशक तत्वों में शामिल किया गया है किन्तु उनसे सम्पूर्ण देश में गौहत्या पर कानूनी प्रतिबंध नहीं लगाया गया है, जिसकी मांग हिन्दू कट्टरवादी लम्बे समय से कर रहे हैं। 1966 में इस मुद्दे पर संसद का घेराव किया गया था और इस गोलीबारी में कई जानें गई थीं। इस संबंध में 1985 से 2006 के बीच लोकसभा में 10 गैर-सरकारी विधेयक पेश किए गए। वर्ष 1979 में जनता दल सरकार ने इस संबंध में सरकारी विधेयक पेश किया और इंदिरा गांधी ने राज्यों को लिखा कि वे गौहत्या पर प्रतिबंध लगाएं। इस मुद्दे का अध्ययन 2 राष्ट्रीय आयोगों ने भी किया किन्तु इस संबंध में कोई केन्द्रीय कानून नहीं बन सका।
नि:संदेह गौमाता हिन्दुओं के लिए पवित्र है और वे कामधेनु और माता के रूप में उसका आदर करते हैं। गाय का हर अंग उपयोगी है। यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था को जीवित रखती है, दूध देती है, गौमूत्र में औषधीय गुण हैं, धार्मिक कर्मकांड में गाय का केन्द्रीय स्थान है फिर भी यह सड़कों पर आवारा मिलती है। गत वर्षों में अनेक राज्यों ने गौहत्या निषेध कानून बनाए हैं। फलस्वरूप पशु संरक्षण में इस संबंध में कानून नेताओं की राजनीतिक आकांक्षा के अनुरूप बने हैं। कुछ राज्यों में गौहत्या पर प्रतिबंध है तो कुछ राज्यों में बूढ़ी और बीमार गायों को मारने की अनुमति है। प्रतिबंध हो या न हो, कुछ राज्यों में गायों को मारने के लिए प्रमाणपत्र की आवश्यकता होती है।
कुल मिलाकर अब लोग जागरूक हो गए हैं कि धर्म और राजनीति का घालमेल नहीं किया जाना चाहिए। हमारे नेताओं ने पुन: बता दिया है कि गाय पवित्र नहीं होती है किन्तु जब वोट प्राप्त करने की बारी आती है तो यह यकायक राजनीतिक कामधेनु बन जाती है। हमारे नेताओं को सत्ता की चाह में गाय को एक धार्मिक मुद्दा, राजनीति का विषय, चुनावी दिखावा और लाभकारी व्यवसाय बनाने से बचना चाहिए।