लखनऊ
यूपी चुनाव में मायावती ने एक बार फिर ब्राह्मण वोट बैंक को साधने की कोशिश शुरू कर दी है। इसका कारण यह माना जा रहा है कि भले ही ब्राह्मण वोट बैंक अभी भारतीय जनता पार्टी से नाराज हो, लेकिन चुनाव के दौरान यह वोट बैंक समाजवादी पार्टी (Samajwdi Party) की तरफ नहीं जाएगा। ऐसे में बसपा (BSP) सुप्रीमो वर्ष 2007 के अपने फॉर्मूले को एक बार फिर साधने की कोशिश में जुट गई हैं। दलित और ब्राह्मणों को एक पाले में लाकर अन्य तमाम विपक्षी दलों को धराशायी करने की उनकी कोशिश है। हालांकि, 15 साल बाद चुनावी मैदान में ब्राह्मणों की याद आने पर भी मायावती से सवाल हो रहे हैं।
उत्तर प्रदेश की राजनीति में ब्राह्मणों की भूमिका काफी अहम मानी जा रही है। ब्राह्मण वोट बैंक परपंरागत तौर पर कांग्रेस और फिर भारतीय जनता पार्टी को वोट देता रहा है। वर्ष 2007 में पहली बार ब्राह्मण वोट बैंक ने एकजुट होकर मायावती को वोट दिया था। मायावती की ब्राह्मण-दलित सोशल इंजीनियरिंग ने उन्हें कुर्सी दिला दी थी। हालांकि, इसके बाद सरकार में ब्राह्मणों को उस स्तर का प्रतिनिधित्व नहीं मिला और नाराजगी अगले ही चुनावों में दिखने लगी थी। अब एक बार फिर मायावती ब्राह्मणों को किए गए वादों को याद दिला रही हैं। उनका मानना है कि ब्राह्मण उन्हें ही एकजुट होकर वोट कर सकता है।
प्रदेश की राजनीति में ब्राह्मणों का है बर्चस्व
यूपी की राजनीति में ब्राह्मणों का बर्चस्व हमेशा से रहा है। प्रदेश में करीब 13 फीसदी ब्राह्मण आबादी है। कई विधानसभा सीटों पर 20 फीसदी से अधिक वोटर ब्राह्मण हैं। ऐसे में हर पार्टी की नजर इस वोट बैंक पर टिकी है। बलरामपुर, बस्ती, संत कबीर नगर, महाराजगंज, गोरखपुर, देवरिया, जौनपुर, अमेठी, वाराणसी, चंदौली, कानपुर, प्रयागराज में ब्राह्मणों वोट 15 फीसदी से ज्यादा हैं। यहां उम्मीदवार की हार-जीत में ब्राह्मण वोटर्स की अहम भूमिका होती है। वर्ष 2017 में 56 सीटों पर ब्राह्मण उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की थी, इनमें 44 भाजपा के थे।
मायावती ने 86 सीटों पर उतारे थे ब्राह्मण उम्मीदवार
वर्ष 2007 में मायावती की अगुआई में बसपा ने ब्राह्मण, दलित और मुस्लिम वोट बैंक को एक पाले में लाने में सफलता दर्ज की थी। तब बसपा ने 86 सीटों पर ब्राह्मणों को उतारा था। ब्राह्मणों ने मायावती को भी एकजुट होकर वोट दे दिया। इसका पहला कारण थ, मायावती ने सोशल इंजीनियरिंग का कॉन्सेप्ट रखा था और दूसरा ब्राह्मण समाजवादी पार्टी से नाराज थे। उस दौरान सपा के विकल्प में बसपा ही सबसे मजबूत पार्टी थी। कांग्रेस और भाजपा की स्थिति ठीक नहीं थी। अब वर्ष 2022 के चुनाव के लिए बसपा की प्लानिंग है कि वह करीब 100 ब्राह्मणों और मुस्लिमों के अलावा अन्य जाति के उम्मीदवारों को टिकट दें।
एनकाउंटर वाली नीति से नाराजगी
ब्राह्मणों की नाराजगी का सबसे बड़ा कारण योगी सरकार की एनकाउंटर वाली नीति से रही है। ब्राह्मण वोट बैंक का मानना है कि इन एनकाउंटर में सबसे अधिक ब्राह्मणों को ही मारा गया। योगी मंत्रिमंडल में ब्राह्मणों को उचित सम्मान नहीं दिए जाने की भी बात कही जा रही है। दिनेश शर्मा और श्रीकांत शर्मा को पहले अहम विभाग मिले थे। फिर जितिन प्रसाद को लाकर भरपाई करने की कोशिश की गई, लेकिन राजपूत जाति के मंत्रियों के बनिस्पत ब्राह्मण मंत्रियों का पोर्टफोलियो उस स्तर का नहीं दिखा है।
हर दल तैयार कर रहा है समीकरण
विधानसभा चुनाव ( UP Chunav ) में हर दल अपना समीकरण तैयार कर रहा है। बसपा ने इस चुनाव के लिए एक बार फिर दलित, ब्राह्मण और मुस्लिम वोट बैंक को साधने की रणनीति बनाई है। वहीं, समाजवादी पार्टी यादव, कुर्मी, मुस्लिम और ब्राह्मण वोट बैंक को जोड़ने की कोशिश में है। कांग्रेस की रणनीति ब्राह्मण, दलित और मुस्लिम वोट बैंक को फिर एकजुट करने की कोशिश रही है। राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा महिलाओं को भी साध रही हैं और उनकी कोशिश भाजपा और सपा से जुड़े ओबीसी वोट बैंक को एकजुट करने की है।
बसपा ने फिर सतीश चंद्र मिश्रा को किया सामने
ब्राह्मण वोट बैंक को साधने की जिम्मेदारी बसपा ने एक बार फिर सतीश चंद्र मिश्रा को दे दी है। वे मायावती के करीबी माने जाते हैं। पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव वर्ष 2007 से पार्टी में बने हुए हैं। वे पूरे परिवार के साथ प्रदेश में बसपा को जीत दिलाने के लिए ब्राह्मणों को साधने की कोशिश की जा रही है। मिश्रा लगातार सभाएं कर रहे हैं। ब्राह्मणों के दबदबे वाली सीटों पर वे मतदाताओं को यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि बसपा के शासनकाल में किस प्रकार की छूट उन्हें मिली थी।
भाजपा के पक्ष में दिखते रहे हैं ब्राह्मण
यूपी के पिछले तीन चुनावों की बात करें तो ब्राह्मण वोट बैंक का झुकाव भाजपा की तरफ रहा है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में 72 फीसदी ब्राह्मणों ने भाजपा को समर्थन दिया था। वहीं, वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव और वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भी ब्राह्मणों की पहली पसंद भाजपा रही। सीएसडीएस के सर्वे के अनुसार, वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में यूपी के 31 फीसदी ब्राह्मण वोटरों ने भाजपा के पक्ष में मतदान किया था।
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में महज 11 फीसदी ब्राह्मण वोटरों का साथ पार्टी को मिला और यूपी में कांग्रेस 2 सीटों पर सिमटी थी। वहीं, वर्ष 2009 में भाजपा को 53 फीसदी ब्राह्मणों का साथ मिला था। बीएसपी को वर्ष 2009 में 9 फीसदी, जबकि वर्ष 2014 में सिर्फ 5 फीसदी वोट मिला। समाजवादी पार्टी इन्हें नहीं रिझा पाई। सपा को वर्ष 2009 और वर्ष 2014 दोनों लोकसभा चुनाव में पांच-पांच फीसदी ही ब्राह्मण वोट हासिल हुए थे।